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{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
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<poem>
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
वो अपने आप को बिखराये और पिरोये भी

बहुत ग़ुबार भरा था दिलों में दोनों के
मगर वो एक ही बिस्तर पे रात सोये भी

बहुत दिनों से नहाये नहीं हैं आँगन में
कभी तो राह की बारिश हमें भिगोये भी

ये तुमसे किसने कहा रात से मैं डरता हूँ
ज़रूर आये मेरे बाज़ुओं में सोये भी

वो नौजवाँ तो जवानी की नींद में ग़ुम था
बहुत पुकारा, झंझोड़ा, लिपट के रोये भी

यक़ीन जानिये अहसास तक न होगा हमें
नसों में सुईयाँ कोई अगर चुभोये भी</poem>
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