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06:20, 18 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
मैं पपीहे की
पिपासा, खोज, आशा
औ' विकट विश्वास पर
पलती प्रतीक्षा
और उसपर व्यंग्य-सा करती
निराशा
और उसकी चील-कौए से चले
जीवनमरण संघर्ष की लंबी कहानी
कह रहा हूँ,
किंतु उससे क्यों
तुम्हारा दिल धड़कता
किंतु उससे क्यों
तुम्हें रोमांच होता,
तुम्हें लगता कि कोईखोलकर पन्ने तुम्हारी डायरी के
पढ़ रहा है?
मैं बताता हूँ,
पपीहा
है बड़ा अद्भुत विहंगम।
यह कहीं घूमे,