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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
नैनीताल में दीवाली
ताल के ह्रदय बले
दीप के प्रतिबिम्ब अतिशीतल
जैसे भाषा में दिपते हैं अर्थ और अभिप्राय और आशय
जैसे राग का मोह
तड़ तडाक तड़ पड़ तड़ तिनक भूम
छूटती है लड़ी एक सामने पहाड़ पर
बच्चों का सुखद शोर
फिंकती हुई चिनगियाँ
बगल के घर की नवेली बहू को
माँ से छिपकर फूलझड़ी थमाता उसका पति
जो छुट्टी पर घर आया है बौडर से
</poem>