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स्त्री / विजय कुमार पंत

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एक तू रचना अनोखी
शाम्भवी सन्दर्भ योगी
चरण जल निश्छल तेरे है
तू धरा सी, सर्वभोगी
तू पवन है,तू अनल है
तू जलधि गंगा का जल है
तू तरुण तरु तीर्ण त्रिन है
तू घटक संचय सबल है
स्वर्ग तू है सत्य तू है
तू प्रखर तू आत्मबल है
तू दिशा तू ज्ञान है भी
तू तनिक अंजन है भी

तू महल, तू रासलीला
वज्र तू है अहि लचीला,
तू सजग तो है समर्पित
तू उन्नीदी , सर्व अर्पित
तू प्रणय तू कामना है
तू हलाहल, वासना है
तू मुकुट तू ही ध्वजा है
राज तुझसे तू प्रजा है

तू कलह तू शांति पथ है
तू विकट, तू एक वृत है
तू शरण है तू क्षमा है
तू अंकिंचन आत्मा है

जीत तू है हार तू है
साँस का आधार तू है
तू विलग है तू विनय है
और समूचा प्यार तू है
</poem>
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