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चौपाल

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/* भक्ति काव्य */
:: 'भक्ति काव्य' नामक एक अलग ही धारा हिन्दी कविता में है, जो आगे चल कर 'सगुण भक्ति काव्य' धारा और 'निर्गुण भक्ति काव्य' धारा में विभक्त हो जाती है । फिर बाद में इन धाराओं का भी कई-कई अन्य धाराओं में विभाजन होता है। अत: मेरे विचार में इस तरह की रचनाओं के लिए 'भक्ति काव्य' नाम से सैक्शन बनाना तो पूरी तरह से ग़लत होगा । आरती और भजन किसी भी रूप में 'भारतीय-संस्कृति' का तो प्रतिनिधित्व पूरी तरह से नहीं करते हैं, हाँ 'हिन्दू संस्कृति' का प्रतिनिधित्व वे करते हैं । 'भारतीय-संस्कृति' तो विभिन्नता में एकता की ज़ोरदार मिसाल है । मेरे ख़्याल से इसे 'भारतीय धार्मिक काव्य' कहना उचित होगा । इससे हिन्दी की 'भक्ति कविता' और 'धार्मिक कविता' का अन्तर स्पष्ट हो सकेगा । ---लीना नियाज
 
"भक्ति काव्य" एक अत्यंत सुंदर नाम है. यदि लीना जी का तर्क मान लिया जाये, तो (उनके कहे अनुसार ही) यह "भारतीय धार्मिक काव्य" के बजाय " हिन्दू काव्य" कहा जाना चाहिये! यह नाम कवित्वहीन एवम् खतरनाक है!
यह सच है कि हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य का एक रूढ़ अर्थ है, पर लीना जी, मैं आपका ध्यान इस ओर भी दिलाना चाहूँगा कि अनेक भक्त कवियों की रचनायें ही आज भी भजनों में गायी जाती हैं.
 
"भक्ति काव्य" नाम श्रेष्ठ है. इससे आचार्य शुक्ल द्वारा किये गये वर्गीकरण का विस्तार भी होगा. यही नहीं, जो आज् भक्ति काव्य को "विगत वैभव" एवम् वर्तमान काव्य को केवल "भुक्ति काव्य" मानते हैं, वे देख पायेंगे कि वर्तमान काल में भी भक्ति-काव्य की धारा निर्विच्छिन्न है. ब्रह्मानंद सरीखे कवि (पिछली शताब्दी के) एवम् महादेवीजी की रहनाओं में भी भक्तिकाव्य ही बोल रहा है. "ओम् जय जगदीश हरे" आज घर-घर में गायी जाती है. क्या यह भी भक्ति-काव्य नहीं है?
 
वस्तुतः, "वर्तमान युग में भक्ति-काव्य की पहचान" यह कविता कोश का एक बड़ा एवम् मौलिक योगदान होगा.
-shishir
Anonymous user