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''' बैलगाड़ियों के पांव '''  कितने तेज कदम थे उनके --समय से भी तेज--कि समय की पकड़ में भी वे न आ सके कभी यांत्रिक वाहनों को बहुत पीछे छोड़ वे खो गए समय के दायरे से एकबैक बाहर छलांग लगाकर तथाकथित इतिहास के अरण्य में,और जाते-जाते मिटाते गए अपने पाँव के निशान भी ,ताकि इस सभ्यता की छाया तकउन निशानों पर हक न जमा सके और हम उन पर चलकर कोई लीक तक न बना सके  सच, पीछे मुड़कर भी न देखासोचा भी नहीं कि हमने उन पर चढ़कर सदियों तक देशी-विदेशी संस्कृतियों में असीम यात्राएं की थीं हम उनके साथ थे उन पर आश्रित थे उनके अपने थे जब वे गएगलियां खूंखार सड़कें हो गईं खेत-खलिहान बहुमंजिले आदम घोसले हो गए मोहल्लों के मकान धुंआ उगलती फैक्ट्रियां हो गए पेड़ों के सिर कलम हो गएऔर उनके धड़ भट्टियों में झोंक दिए गए,गाँव शहर के पीछे हांफते हुए भागते दिखेऔर पगडंडियाँ प्राय: द्रुतगामी मोटर-गाड़ियों के नीचे दब-पिच कर दुर्घटनाग्रस्त हो गईं, सच, कुछ मन-भाए मौसम दूभर हो गए क्योंकि उन्होंने गोरैयों, नीलकंठों, शुग्गों, मोरों के सपनों में आना छोड़ दिया था उनकी याद में बचे-खुचे गीधों तक को उदास देखा हैजो उन्हें जोहने न जाने कहां ओझल हो गए हैं