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बारबार अंतिम प्रणाम करता तुमको मनहे भारत की आत्मा, तुम कब थे भंगुर तन?व्याप्त हो गए जन मन में तुम आज महात्मन्नव प्रकाश बन, आलोकित कर नव जग-जीवन!पार कर चुके थे निश्वय तुम जन्म औ’ निधनइसीलिए बन सके आज तुम दिव्य जागरण!श्रद्धानत अंतिम प्रणाम करता तुमको मनहे भारत की आत्मा, नव जीवन के जीवन!
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