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आवाज़ / रमेश कौशिक

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|रचनाकार=रमेश कौशिक
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<poem>'''आवाज़'''

तुम कहीं भी हो
तुम्हारे और मेरे
बीच
सदैव एक खाली सुरंग
रहती है
जिसमें गूँजती
आवाज़
हमारा सम्बन्ध
जोड़ती है

आवाज़, आवाज़ है
इसका कोई अर्थ है
मैं नहीं जानता
सिवाय इसके
कि यह सम्बन्ध जोड़ती है
आओ
हम इस से अपना सम्बन्ध जोड़े
</poem>
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