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13:05, 25 जून 2010
अकड़ा खड़ा चना
माटी का बेटा।
धूप गौरैया
उतरती छज्जे से
आँगन बीच !
थका सूरज
ढहा देगा फिर भी
तम का दुर्ग।
पीटता नभ
बिजली के कोढ़े से
रोता बादल !
रोज ले आती
गौरैया घास-फूस
फेंक देती माँ !
साँझ होते ही
बैठता आसन पे
ऋषि सूरज।
गंध के बोरे
लाता है ढो ढोकर
हवा का घोड़ा।
हाइकु हंस
हौले से हवा हुआ
काँपा शैवाल।
दूब अभी है ज़िन्दा
पिक कूकेगा ।
लोकगीत पीसना
अबाध गति।
थका सूरज
ढहा देगा फिर भी
तम का दुर्ग।
साँझ होते ही
बैठता आसन पे
ऋषि सूरज।
गंध के बोरे
लाता है ढो ढोकर
हवा का घोड़ा।
हाइकु हंस
हौले से हवा हुआ
काँपा शैवाल।