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Kavita Kosh से
वर्तनी व फ़ॉर्मेट सुधार
झुलसे जले -
:::साथ सोए स्वप्न को
:::पल-पल झिंझोड़ा,:::देखा:::उनींदी आँख से,::::::औ’ सकपकाए।
बाँह धर कर
:::::स्वप्न हूँ
:::::मत आँख खोलो।
कल्पदर्शी चक्षु का