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चाहत / रेणु हुसैन

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<poem>
जीवन है लम्बा, तन्हां-सा
कोई लम्हा गर मिल जाए
अपना-सा
तो शायद हम जी जाएं

एक ज़रा-सी अपनी ख़्वाहिश
एक ज़रा-सी अपनी चाहत
एक छोटी-सी छत हो अपनी
एक छोटा-सा दर हो
उसमें हो छोटी-सी दुनिया
इस दुनिया में छोटी-छोटी अपनी खुशियां
गर खिल जाएं
तो शायद हम जी जाएं

एक ज़रा-सी आहट सुनकर
दिल ये चहके, झूमे-गाए
और किसी की सांस की गर्मी
सारी उदासी पिघला जाए
तन्हाई रौशन हो जाए
बंद लबों की सारी बातें
खुद से ज़ाहिर हो जाएं
तो शायद हम जी जाएं
<poem>
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