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मिलन / रेणु हुसैन

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<poem>
सजन ये कैसा रहा मिलन

सूत्र प्रणय का बंध तो गया
बरसों का अब अपना साथ
मगर न मंगल गीत बजे
और सजी ना मेंहदी हाथ
बाबुल के आंगन ने दी न विदाई
और ना मिला सगुन
सजन ये कैसा रहा मिलन

साथ-साथ हैं हम-तुम फिर भी
तन्हा-तन्हा गुज़री रात
आंखों-आंखों में कहा बहुत कुछ
छूट गई पर कोई बात
क्या है जिसकी ख़ातिर अब भी
तरस रहा है मन
सजन ये कैसा रहा मिलन
<poem>
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