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श्रद्धांजली / रेणु हुसैन

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<poem>
इंसानी जुनूनो-वहशत के
मज़हबी दहशत के
दीनो-अम्न की रुख़्सत के
साक्षी हैं वे लोग
उन्हें मत मारो

दफ़न मत करो उनकी लाशें
किसी दरिया में
बहाओ मत उनकी अस्थियां
कि हर दरिया अब
ख़ून से लबरेज़ है
एक बेइंतेहा ख़ौफ़ज़दा तारीख़ से
गुज़रे है वे लोग

श्रद्धांजलि देकर उन्हें मत मारो
तीरों की सेज पर उन्हें लिटाओ
और ‘आयुष्मान भव’ का आशीर्वाद दो

<poem>
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