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खुशी-ग़म / रेणु हुसैन

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<poem>
खुशी आती है
किसी मेहमान की तरह
लाख रोको नहीं रुकती
जैसे आती है चली जाती है

ग़म आता है
अपने ही साये की तरह
लाख हटाओ
नहीं हटता
साथ-साथ जीये जाता है।
<poem>
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