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समंदर / रेणु हुसैन

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<poem>

देखा उसे उस पल
अनगिनत लहरों पत सवार
लहरों के घोड़े पर
चढ़े-उतरे बारम्बार

कभी बहुत चुप-चुप
कभी मचाये शोर
लहरों के संग खेले-कूदे
जैसे मनमौजी किशोर

माझी जैसे ही डाले
उसमें अपनी नाव
संग-संग जाये उसके
जहां जाये नाव

साहिल पर बिखराये
सीपी रंग-बिरंगी
रह जाती है जिनमें
याद समंदर की

<poem>
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