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14:13, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
घुप्प अंधेरे में
सड़कों पर छिड़ा हो युद्ध
घमासान ।
दहक रहे हों
गली-मुहल्ले ।
दूर पहाड़ की घाटी में
तीर छिदे शिशु की पीड़ा में मिली
मां के रुदन की आवाज
शहर कंपा रही हो ।
कितना सुकून देता है
सही शब्द का चुनाव ।
ये नहीं होता तो क्या होता
सड़क, घर, पहाड़ पर
जहां भी होता
कर्म की भाषा में मरा होता ।
कितना भरोसा देता है अर्थ
शब्दों की ओट में
खरगोश सा छिप जाता
सुस्ताता
धूप भरे दिन में
निकलकर अचानक
सौंदर्य से सबको लुभाता ।
<poem>