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14:19, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
झक्क सफेद है
यहां की समरस काया
पावनता का बोध कराती हुई
यूरोप बर्फ का देश है ।
गदराये उरोजों से
उभरे हैं यहां के
नयनाभिराम पर्वत
यूरोप पहाड़ों का देश है ।
रंग बिरंगे ट्यूलिप
खुलती हैं गुलाब की पंखुड़ी
तराशी हुई रक्तवर्ण
यूरोप फूलों का देश है ।
स्वच्छ नीलिमा से भरी
ये परदर्शी आंखें
यूरोप सागरों का देश है ।
पहाड़ों को तराशकर
बहती नदियां
और दमकते स्वर्णिम
सागर तट
निर्वसन जंघाएं
यूरोप मुक्त वर्जनाओं का देश है ।
<poem>