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{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
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<poem>

झक्क सफेद है
यहां की समरस काया
पावनता का बोध कराती हुई
यूरोप बर्फ का देश है ।

गदराये उरोजों से
उभरे हैं यहां के
नयनाभिराम पर्वत
यूरोप पहाड़ों का देश है ।

रंग बिरंगे ट्यूलिप
खुलती हैं गुलाब की पंखुड़ी
तराशी हुई रक्तवर्ण
यूरोप फूलों का देश है ।

स्वच्छ नीलिमा से भरी
ये परदर्शी आंखें
यूरोप सागरों का देश है ।

पहाड़ों को तराशकर
बहती नदियां
और दमकते स्वर्णिम
सागर तट
निर्वसन जंघाएं
यूरोप मुक्त वर्जनाओं का देश है ।
<poem>
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