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Kavita Kosh से
रोशनी हमें बाँट देती है
टुकड़ों-टुकड़ों में,
बेतरतीब बिखेर-छींट देती है,
इतनी क्रूरता से पटककर
छितरा देती है
कि बहुत मुश्किल असंभव हो जाता है
अपने हिज्जे-हिज्जे समेटना
और खुद में वापस आना
हमें और हमारे टुकड़ों को जोड़ देता है,
हमारे बिखराव को
अपनी मुट्ठी में समेतसमेट
हमें साकार और ठोस रहने देता है,
बड़े लाड़-दुलार से
छिपा लेता है --
अपनी गरम-गरम गोद में--
दुनियावी नज़रों से बखूबी बचाकर