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नया पृष्ठ: <poem>पाला खाए पीले पात लिए जमे हुए खड़े हैं कोहरा ओढ़े पेड़ ठिठुरता…
<poem>पाला खाए पीले पात लिए
जमे हुए खड़े हैं
कोहरा ओढ़े पेड़

ठिठुरता पड़ा कहीं अकेला मैं
हो उठा ताज़ा-दम
मन-छ्त पर छितराई जैसे ही
गुनगुनी धूप-सी स्मृति तुम्हारी !

</poem>
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