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Kavita Kosh से
भर सकती है सागर-महासागर,
डुबो सकती है
स्वयं में सार सारा ब्रह्माण्ड,
किन्तु बहुत थोडी रह जाएगी
मां के आंसुओं के सामने
--दो--
भावनाओं के की बाढ बांध सकती है,
स्नेह और आसक्ति की
अविरल बरसात ला सकती है,
परचम लहरा सकती है,
हां, शायद मिटा सकती है कविता
विश्व-साहित्य समेट सकती है,
भाषाओं की घुडसवारी कर
असीम कल्पनाएं चहू छू सकती है,
शब्दकोशों को अपना अनुचर बना सकती है,
वैचारिक सीमाएं लांघ सकती है
--चार--
बहुत खुश हो सकती है कविता,
अपने ठहाकों और कविता कहकहों से
दर्द का इतिहास धुंधला सकती है,
अपने अट्टहास से