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देखो, आईं हैं नदिया की में लहरें
अपना घर-वर छोड़ के
डोलें बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगलरिश्तेबस्ती-बंधन तोड़ बस्तीबहतीं रिश्ते जोड़ के
मीठी बातें यादें उदगम कीउदगम पर ही छूट गईंपानी में घुलती जातींभावों सूरज की लड़ियाँ कैसेकिरणें-कलियाँराहों में ही टूट गईं?लहरों पर खिलती जातीं
कितनी निर्मोही, यों बनी बटोहीवर्तमान केहोंठ चूमतीअपनों से मुँह अतीत से मोड़ के!
सीखा तपना बहती धारा में हर पत्थर पर-काँटों पर चलते रहनाका भी बहते जानाकि प्यास बुझाना प्यासे तापस कीसीखा खुद जलते रहनाजाना
है चाहा कब प्रतिदान लहर नेदरकी धरती जोड़ बोर के?
मीलों लम्बा अभी सफ़र पड़ासाँसें हैं कुछ ही शेष बचींअब भी उत्साह बना बाकी हैउत्साह अभीसच है थोड़ी -सी है कमर लची
वरण करेंगीकभी मुहाने पहुंचेंगी लहरेंसिन्धु कासारी परतें पूर्वाग्रह सब तोड़ के
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