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{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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<poem>
''' आस मिली--गीत '''
मदमाते चितवन के बाग में
अंगड़ाते सपनों की धूप खिली .....
नैनों के सोते से
स्नेह-जल फुहारकर,
सांस के कुदाल से
क्यारियाँ संवारकर,
होठों के हाथों से
प्रेम-बीज छितराकरर,
अलसाती इच्छाएं रोप चली.....
कमनीय अंगों के धूप से
मन की कलियाँ चटकाकर,
कदमों की अल्हड़ थापों से
कलियों की गर्दन झमकाकर,
सर्पीली बाँहों की लहरों से
कलियों के होठ उघारकर,
आगंतुक यौवन को आस मिली.....
(रचना-काल: जुलाई,१९९६)
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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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''' आस मिली--गीत '''
मदमाते चितवन के बाग में
अंगड़ाते सपनों की धूप खिली .....
नैनों के सोते से
स्नेह-जल फुहारकर,
सांस के कुदाल से
क्यारियाँ संवारकर,
होठों के हाथों से
प्रेम-बीज छितराकरर,
अलसाती इच्छाएं रोप चली.....
कमनीय अंगों के धूप से
मन की कलियाँ चटकाकर,
कदमों की अल्हड़ थापों से
कलियों की गर्दन झमकाकर,
सर्पीली बाँहों की लहरों से
कलियों के होठ उघारकर,
आगंतुक यौवन को आस मिली.....
(रचना-काल: जुलाई,१९९६)