भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''दिन-रात बस…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''दिन-रात बसर करते हैं--गज़ल'''
जो मेरे साथ दिन-रात बसर करते हैं
लोग उन्हें मेहमान कहते हैं
जिनके लफ्ज़ों से मेरी रूह के कतरे बिखरे
लोग उन्हें बेज़ुबान कहते हैं
जिनकी रुस्वाइयाँ मैने पचाई थक-छक कर
वो मुझे पीकदान कहते हैं
जिनकी राहों से कांटे बटोरे चुन-चुन कर
वो मुझे कूड़ादान कहते हैं
जिनके अस्मत को सींचा खुद लाहु के चश्मों से
वो इसे रक्त-दान कहते हैं
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''दिन-रात बसर करते हैं--गज़ल'''
जो मेरे साथ दिन-रात बसर करते हैं
लोग उन्हें मेहमान कहते हैं
जिनके लफ्ज़ों से मेरी रूह के कतरे बिखरे
लोग उन्हें बेज़ुबान कहते हैं
जिनकी रुस्वाइयाँ मैने पचाई थक-छक कर
वो मुझे पीकदान कहते हैं
जिनकी राहों से कांटे बटोरे चुन-चुन कर
वो मुझे कूड़ादान कहते हैं
जिनके अस्मत को सींचा खुद लाहु के चश्मों से
वो इसे रक्त-दान कहते हैं