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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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'''दिन-रात बसर करते हैं--गज़ल'''

जो मेरे साथ दिन-रात बसर करते हैं
लोग उन्हें मेहमान कहते हैं

जिनके लफ्ज़ों से मेरी रूह के कतरे बिखरे
लोग उन्हें बेज़ुबान कहते हैं

जिनकी रुस्वाइयाँ मैने पचाई थक-छक कर
वो मुझे पीकदान कहते हैं

जिनकी राहों से कांटे बटोरे चुन-चुन कर
वो मुझे कूड़ादान कहते हैं

जिनके अस्मत को सींचा खुद लाहु के चश्मों से
वो इसे रक्त-दान कहते हैं