Changes

रामलखन / भारतेन्दु मिश्र

24 bytes added, 07:27, 2 जुलाई 2010
'''युवा कवि रामलखन के असामयिक निधन पर शोकगीत'''
तिकड्म तिकड़म की दुनिया मे रहकर
बहुत जी गए रामलखन
बडे बडो बड़े-बड़ों के बीच छुपे -रुस्तम निकले तुम रामलखन।
अपनी शर्तो पर जीने का हस्र
यही सब होना था
घरवालो घरवालों को बीच राह मे छोड छोड़ गए तुम रामलखन।
कविता छूटी दुनिया छूटी
सारे सपने छूट गए
सच्चाई का कच्चा साँचा
छोड छोड़ गये तुम रामलखन।
कल जिसको उँगली पकडाई पकड़ाई
वह मासूम हथेली थी
बस उस पर उँगली का छापा
छोड छोड़ गए तुम रामलखन।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,186
edits