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<Poem>
 किताबे-शौक शौक़ में क्या -क्या निशानियाँ रख दींकहीं पे फ़ूलफूल, कहीं हमने तितलियाँ रख दीं।
कभी मिलेंगी जो तनहाइयाँ तो पढ़ लेंगे
छुपाके हमने कुछ ऐसी कहानियाँ रख दीं।
यही कि हाथ हमारे भी हो गए जख्मीज़ख़्मी
गुलों के शौक में काँटों पे उंगलियाँ रख दीं।
बताओ मरियम ओ सीता की बेटियों की कसम
ये किसने आग के शोलॊं शोलों में लड़कियाँ रख दीं।
कोई लकीर तुम्हारी तरफ़ नहीं जाती
ग़ज़ल कुछ और भी मांगे है अंजना हमसे
ये क्या कि आरिज ओ गेसू की शोखियाँ शोख़ियाँ रख दीं।
</poem>