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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया
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<poem>
पान-फूल काया में 
पानी की माया में 
हरी-भरी छाया में 
थोड़ी गरबीली-सी 
थोड़ी शरमीली-सी 
लता पान की ! 
छप्पर पर घनी-घनी 
छाई है बनी-ठनी 
परवल के साथ-साथ 
हँसती है पात-गात 
लता शीतलता की 
लता पान की ! 
खुलती कोंपल-कोंपल 
चढ़ती जाती प्रतिपल 
अपने ही रंग रची 
बसती अपनी सुवास 
रसती रसना के रस 
पान-वल्लरी ! 
प्राणों से हींच-हींच 
आँखों को सींच-सींच 
पनवारी के दरपन में 
खुद को निरख रही 
चोरी-चोरी गोरी 
प्राण-वल्लरी ! 
</poem>