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जो रहा अनकहा / नवनीत पाण्डे

661 bytes removed, 11:55, 4 जुलाई 2010
यह विलोम आसमान
एक ही समंदर सारे समंदरमेरे अंदरसारी नदियां भागती सी आती हैटकराती हैऔर सूख जाती हैसमंदर की नहीं कोई एक नदीफिर भी पाले है हर नदीएक समंदरएक ही समंदर कविता अथाह नीले मेंचुपचापटप्प से गिरी एक नन्हीं सी कंकरीबनातीएक के बाद एक कई वृत्तहोती अथाहचुपचाप
</poem>
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