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एक ही समंदर / नवनीत पाण्डे

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एक समंदर
एक ही समंदर
कविता
अथाह नीले में
चुपचाप
टप्प से गिरी एक नन्हीं सी कंकरी
बनाती
एक के बाद एक कई वृत्त
होती अथाह
चुपचाप
</poem>
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