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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> (नासिर काज़म…
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(नासिर काज़मी को याद करते हुए)

सपने में सपना देखा था’
नूर का इक दरिया बहता था

नग़मा भी वो क्या नग़मा था
आह से मेरी जो उपजा था

जाने क्या होने वाला था
हर मंजर सहमा-सहमा था

ठहरे पानी में हलचल थी
पत्थर किसने फेंक दिया था

सन्नाटे के बाहर-भीतर
बस मैं ही चुपचाप खड़ा था

चेहरे पर सहरा का मंज़र
आँखों में दरिया देखा था

दिल के सहरा में जाने क्यों
एक समुन्दर चीख़ रहा था
बिजली सी वो क्या चमकी थी
पानी-सा वो क्या बरसा था

ज़ाहिर में वो ख़ुश था लेकिन
अन्दर से टूटा-टूटा था

कल उसकी सूखी आँखों से
एक समुन्दर झाँक रहा था

छोड़ो अब वो पहली बातें
समझो एक सपना देखा था

अश्कों की क़न्दील जलाकर
कोई रस्ता देख रहा था

तेरे आने से पहले भी
इस जंगल में फूल खिला था

सुनते हैं वो हमसे बिछड़के
खोया-खोया सा रहता था

<poem>
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