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14:29, 4 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने देखा:
भीख माँगने वाले बच्चे
अपने ही स्वाँग पर
जब हँसी-ठट्ठा करते हैं
तो भीख देने वाला अपने को ठगा हुआ महसूस करता है
और दुत्कारने वाला अपनी क्रूरता पर पछताता है
आख़िर ये फैले हुए हाथ
मेरी नींद से निकलकर
तुम्हारे सपनों तक क्यों नहीं जाते
कहीं ऐसा न हो
कि आस-उम्मीद पर जीने वाले
ख़्वाब का दर बन्द कर लें
<poem>