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संसद की भाषा
आजकल खादी की भाषा बोलती है
वहाँ की हर कंकड़ी
अपने को
कमल-पत्र पर गिरी ओस की बूँद समझती है

तैंतीस गाँव के उजड़े हुए टीले पर
क़ब्ज़ास करके
वो समझते हैं कि
हिन्दुस्तान की सरज़मीन के चारों तरफ़
ब्रह्माण्ड में उनकी तूती बोलती है
और...
और ख़ाकी रंग की जमाअत को गुमान है
कि वो देश के अन्तिम नागरिक को
इस ऊँचे टीले से वरदान बाँटती है

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