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नयी लड़ाई / गोबिन्द प्रसाद

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अब लड़ाई बदल गयी है
अब लड़ने के औज़ार भी बदल गये हैं
लड़ाई क्या होती है
अब लड़ाई की परिभाषा भी बदल गयी है
इस परिभाषा ने
अब बदल दी है लड़ने की भाषा

आप क्या समझते हैं
भाषा बदलने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
भाषा बदलने से
फैलने लगता है अमेरिका का आकाश
भाषा के बदलने से
मुशर्रफ़ के कन्धे उचकना बन्द कर देते हैं
भाषा के बदलने से
सद्दाकम का महल ढेर हो जाता है
और बुश के नाम के आगे
विशेषण बढ़ते जाते हैं –जीते हुए तमग़ों की तरह

भाषा के बदलने से नींदें उड़ जाती हैं
भाषा के बदलने से बदल जाते हैं सपने
बहरहाल छोड़ो...सपनों की बातें करेंगे;लेकिन बाद में
हाँ तो हम कह रहे थे कि अब लड़ाई बदल गयी है
लड़ाई क्या तीर-कमानों से ही होती है
या कि पथरबाज़ी से ही होती है लड़ाई
या फ़िर गिरेबान पकड़के
या गाली-गलौज पर उतर आने से होती है लड़ाई
ये सब तो ईमानदारी के सबूत हैं,नासमझी की हरकतें हैं
दरअस्ल आमने-सामने की लड़ाई अब कोई लड़ाई नहीं होती
अन्तरराष्ट्रीय पट्ठे अब इसे लड़ाई कम खेल ज़्यादा समझते हैं
<poem>
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