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सखी री देखहु बाल-बिनोद|खेलत राम-कृष्ण दोऊ आँगन किलकत हँसत प्रमोद॥प्रमोद ।।कबहुँ घूटूरुअन दौरत दोऊ मिलि धूल-धूसरित गात।गात ।देखि-देखि यह बाल चरित छबि, जननी बलि-बलि जात॥जात ।।झगरत कबहुँ दोऊ आनंद भरि, कबहुँ चलत हैं धाय।धाय ।कबहुँ गहत माता की चोटी, माखन माँगत आय॥आय ।।घर घर तें आवत ब्रजनारी, देखन यह आनंद।आनंद ।बाल रूप क्रीड़त हरि आँगन, छबि लखि बलि ’हरिचंद’॥’हरिचंद’ ।।
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