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<poem>
रूप दिखावत सरबस लूटै ।
:::फ़ंदे फंदे मैं जो पड़ै न छूटै ।
कपट कटारी जिय मैं हुलिस ।
:::क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।
</poem>
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