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रूप दिखावत सरबस लूटै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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07:04, 12 जुलाई 2010
<poem>
रूप दिखावत सरबस लूटै ।
:::
फ़ंदे
फंदे
मैं जो पड़ै न छूटै ।
कपट कटारी जिय मैं हुलिस ।
:::क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।
</poem>
अनिल जनविजय
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