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|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
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<Poem>

मेरे कमरे की एक खिड़की से पहाड़ों की हवा आती है
दूसरी से समुद्रों की
आसमान की तरफ खुलता है दरवाजा
नीले फूलों वाले कुछ पौधे उगे हैं कमरे में
आधी रात को मैं दरवाजा खोलता हूं टूटकर गिरते हैं तारे
और कुछ पौधे उगते हैं वहां से
नीले फूल टिमटिमाते हैं आधी रात को
मैंने कुछ बीज इकट्ठे कर रखे हैं इन पौधों के
जिन्‍हें मैं फेंकता रहता हूं
पहाड़ों और समुद्रों की तरफ

किसी दिन बन्‍द हो जायेगा
मेरे कमरे का दरवाजा
सूख जाऊंगा मैं
लेकिन पौधे उगते रहेंगे
पहाड़ों और समुद्रों की तरफ.
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