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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna तुम्हीं तलाशो... |रचनाकार=राजेश चड्ढा }} <poem> तुम्हीं तलाश…
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{{KKRachna तुम्हीं तलाशो...
|रचनाकार=राजेश चड्ढा
}}
<poem>
तुम्हीं तलाशो तुम्हें तलाश-ए-सहर होगी,
हमको मालूम है सहर किसे मयस्सर होगी।
पागल हो हाथ उठाए हो दुआ मांग रहे हो,
पिघला खुदा का दिल तो बारिश-ए-जहर होगी।
चांदनी की आस में आंखें गंवाए बैठे हो,
चांद जलाके रख देगी अगर हमारी नजर होगी।
छोड़ो हमारा साथ हम इम्तिहान की तरह हैं,
नतीजे वाली बात हुक्मरान के घर होगी।
अपनी तो जिंदगी की रफ्तार ही कुछ ऐसी है,
जीने को यहां जिए हैं उम्र अगले शहर होगी।
</poem>
{{KKRachna तुम्हीं तलाशो...
|रचनाकार=राजेश चड्ढा
}}
<poem>
तुम्हीं तलाशो तुम्हें तलाश-ए-सहर होगी,
हमको मालूम है सहर किसे मयस्सर होगी।
पागल हो हाथ उठाए हो दुआ मांग रहे हो,
पिघला खुदा का दिल तो बारिश-ए-जहर होगी।
चांदनी की आस में आंखें गंवाए बैठे हो,
चांद जलाके रख देगी अगर हमारी नजर होगी।
छोड़ो हमारा साथ हम इम्तिहान की तरह हैं,
नतीजे वाली बात हुक्मरान के घर होगी।
अपनी तो जिंदगी की रफ्तार ही कुछ ऐसी है,
जीने को यहां जिए हैं उम्र अगले शहर होगी।
</poem>