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Kavita Kosh से
अपनी रामकहानी के लिफ़ाफ़े को
दीमकग्रस्त कागजों के बीच दबा
दुनियावी तस्वीरों की चित्रवीथि लगाना
बेहद दुष्कर शल्यक्रिया है
कविताओं का पाठ्याभिषेक करना
कवि की एक आत्मघाती गुस्ताखी है,
अस्मिता पर फब्तियां कसती हैं,
उसे खुद के प्रति संवेदनशून्य होने पर
जिन्हें उसने अपने शब्दों और स्वरों से
इस काबिल बनाया है
कि वे अपने को चतुर्दिक प्रदर्शित कर सकें
बेशक! कितनी बड़ी यातना है
अपनी हस्ती को का कविताओं के हाथों मटियामेट करानाहोना,
कविता की सेहत के लिए
अपनी संक्रमणशील बीमारी को
उससे बचाना
जबकि कविता उससे ही
जन्मती, पलती और बढ़ती है
जवान होती है
और कलाकार के घातक विषाणु
उसे छू तक नहीं पाते हैं.