{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=साहिर लुधियानवी]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:नज़्म]]{{KKCatNazm}}[[Category:साहिर लुधियानवी]]{{KKVID|v=K5qpLfwEM9c}}<poem>कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी
कभी कभी मेरे दिल अजब न था के मैं बेगाना-ए-अलम रह कर तेरे जमाल की रानाईयों में ख़याल आता है<br><br>खो रहता तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीमबाज़ आँखें इन्हीं हसीन फ़सानों में महव हो रहता
के ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की नर्म छाँव में <br> गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी <br>तेरे लबों से हलावट के घूँट पी लेता ये तीर्गी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है <br>हयात चीखती फिरती बरहना-सर, और मैं तेरी नज़र की शुआओं घनेरी ज़ुल्फ़ों के साये में खो भी सकती थी <br><br>छुप के जी लेता
अजब मगर ये हो न था के मैं बेगाना-ए-अलम रह कर <br>तेरे जमाल की रानाईयों में खो रहता <br>सका और अब ये आलम है के तू नहीं, तेरा गुदाज़ बदन ग़म, तेरी नीमबाज़ आँखें <br>जुस्तजू भी नहीं इन्हीं हसीन फ़सानों में महब हो रहता <br><br>गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं
पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की <br>भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले तेरे लबों गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रह्गुज़ारों से हलावत के घूँट पी लेता <br> महीब साये मेरी सम्त बढ़ते आते हैं हयात चीखती फिरती बरहना-सर, और मैं <br>घनेरी ज़ुल्फ़ों ओ-मौत के साये में छुप के जी लेता <br><br>पुरहौल ख़ारज़ारों से
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है <br>कोई जादह-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़ के तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं <br>गुज़र भटक रही है कुछ इस तरह ख़लाओं में ज़िन्दगी जैसे <br>मेरी इसे किसी के सहारे की आरज़ू इन्हीं ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खोकर मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर फिर भी नहीं <br><br>
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले <br>कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी गुज़रगाहों से <br>मुहीब साये मेरी सिम्त बढ़ते आते हैं <br>हयात-ओ-मौत के पुरहौल ख़ारज़ारों से <br><br>...................................................................
न कोई जादा न मंज़िल न रोशनी का सुराग़ <br>भटक रही है ख़लाओं में ज़िन्दगी मेरी <br>इन्हीं ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खोकर <br>मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर यूँ ही <br><br>'''[[कहिले काहीँ / साहिर लुधियानवी / सुमन पोखरेल|यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्]]'''
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है <br><br/poem>