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04:40, 18 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मुकेश मानस
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<poem>
सखे मेरे गीतों में बस कर
इनको सुरमय कर देते
मन फिर से भर आया था तो
नेह जलधि भर आया था तो
आंसू अपनी आंखों के सब
मेरी आंखों में भर देते, सखे………
साथी पंथी छूटे थे तो
स्वर वीणा के टूटे थे तो
हृदय समर्पित कर देता मैं
एक इशारा कर देते, सखे………
टूटा जो उर दर्पण था तो
झूठा कोई समर्पण था तो
तो तुम हाथ थके अपने
मेरे कांधे पर धर देते, सखे………
1988
<poem>