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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=
}}
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जितनी बार लड़ेंगे दुख से
हम उतने ही वीर बनेंगे
राहों में चाहे शूल मिलें
मन के कोमल फूल जलें
जितनी बाधाएं होंगी पथ में
हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी बार्……
दुख के बादल तो छायेंगे
जल विपदा का बरसाएंगे
एक दिन दुख ओ` पीड़ा
अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार
1987
<poem>
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जितनी बार लड़ेंगे दुख से
हम उतने ही वीर बनेंगे
राहों में चाहे शूल मिलें
मन के कोमल फूल जलें
जितनी बाधाएं होंगी पथ में
हम उतने ही धीर बनेंगे, जितनी बार्……
दुख के बादल तो छायेंगे
जल विपदा का बरसाएंगे
एक दिन दुख ओ` पीड़ा
अपनी ही तकदीर बनेंगे, जितनी बार
1987
<poem>