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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=
}}
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मैं तो भूला राग रंग सब
तुम ही कहो प्रिये क्या गाऊँ मैं
आता वो दिन याद कि जब मैं
पंख लगा उड़ता कानन में
आनन होता थ दर्पण में
दर्पण होता था आनन में
अब ना कानन, अब ना दर्पण
आनन अब क्या सजाऊँ मैं………॥
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
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मैं तो भूला राग रंग सब
तुम ही कहो प्रिये क्या गाऊँ मैं
आता वो दिन याद कि जब मैं
पंख लगा उड़ता कानन में
आनन होता थ दर्पण में
दर्पण होता था आनन में
अब ना कानन, अब ना दर्पण
आनन अब क्या सजाऊँ मैं………॥
<poem>