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फूल / मुकेश मानस

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वह था एक बीज की तरह
मेरे भीतर जाने कब से
अब फूल बनकर महक उठा है
मेरे हृदय की डाल पर

बरसों बाद
मुझे पता चला
कि वो फूल तुम ही तो हो
तुम्हारा ही रंग है उसमें
तुम्हारी ही गंध, तुम्हारा ही रूप
मेरे रोम-रोम में,
तुम ही तो खिली हो

लो प्रिये
ये मेरा प्यार लो
जो मुझे मिला था
एक बीज की तरह
मैं उसे फूल की तरह समर्पित करता हूँ

लो प्रिये
ये मेरा प्यार लो।
1994

<poem>
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