1,308 bytes added,
16:58, 18 जुलाई 2010 नफरत का भाव ज्यों ज्यों खोता चला गया
मैं रफ्ता रफ्ता आदमी होता चला गया .....
.
फिर हो गया मै प्यार की गंगा से तरबतर
गुजरा जिधर से सबको भिगोता चला गया ....
सोचा हमेशा मुझसे किसी का बुरा न हो
नेकी हुई दरिया में डुबोता चला गया.....
कटुता की सुई लेके खड़े थे जो मेरे मीत
सद् भावना के फूल पिरोता चला गया....
जितना सुना था उतना जमाना बुरा नहीं.
विश्वास अपने आप पर होता चला गया...
अपने से ही बनती है बिगड़ती है ये दुनियां
मैं अपने मन के मैल को धोता चला गया....
उपजाउ दिल हैं बेहद मेरे शहर के लोग
हर दिल में बीज प्यार के बोता चला गया...