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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संतोष मायामोहन |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>मैं नाहना नहाना चाहती हूंहूँ
कर्मनाशा नदी में,
मैं धोना चाहती हूंहूँ
अपने सभी -
पाप और पुण्य -
मैं बनना चाहती हूं हूँ -
मनुष्य
और देखना चाहती हूं हूँ -
अपने भीतर की
मानवता ।