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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>घुंडियों घुँडियों के मुंह मुँह लगाते ही
लगा मुझे
सारा सुख यहीं है
उमस
और लू के थपेड़े
या ओलावृष्टि की मार
कुछ नहीं कर सकती मेरा
तुम्हारी गोद मे मुझे डर कैसा
मैं चूंध चूँध तृप्त होता हूंचूंध चूँध तृप्त होता है जगत
तुम्हारी छातियों में
क्षीर -सागर है मां माँ !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>