भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
आगंतुक संस्कृति के लिए
कि शहर के बच्चे रोने से
बाज आ चुके हैं,?
ज़रुरत नहीं है
इस खुले सच की पड़ताल करने
या,शोध-अनुसंधान करने की --कि किसी अभिशाप के चलते उनकी आंखों का पानी रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है.