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रोज़ / चंद्र रेखा ढडवाल

16 bytes added, 02:12, 21 जुलाई 2010
<poem>
जलती / बुझतीआग पर
तवा रखते सोचती है
कितनी चाहिए होंगी रोटियाँ
बड़े को चार
छिटे छोटे को तीन
मुन्नी को आज एक ही
और नन्हे को...