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रोज़ / चंद्र रेखा ढडवाल
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02:13, 21 जुलाई 2010
जलती / बुझती आग पर
तवा रखते सोचती है
कितनी चाहिए होंगी रोटियाँ
द्विजेन्द्र द्विज
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