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Kavita Kosh से
केवल दर्द है फिर क्यों है यह प्यार ?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूंकि चूँकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्त में जलती ईच्छाओं इच्छाओं और आंखों आँखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्कर क्योंकर ?
दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएं हवाएँ उसके लिए हैं;फूल, पंक्षियों का कलरव सबकुछ सब कुछ
उसके लिए है
पर प्यार आता है