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इंडिया गेट / जय छांछा
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06:57, 22 जुलाई 2010
<Poem>
इंडिया गेट
मैंने
तम्हें
तुम्हें
दूर से देखा था
हाँ, सच, बहुत दूर से देखा था ।
अनिल जनविजय
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